अक्सर हम यही जानते है कि किसी भी पूजा या शुभ काम करने से पहले गणेश जी पूजा करनी चाहिए. गणेश जी के प्रथम पूज्य होने के कारणो पर एक नजर डालते हैं! श्री गणेश जी से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं.उनके बारे मे ना सिर्फ ढेरो कहानियां है बल्कि वो अपने प्रत्येक अंग से कुछ न कुछ कहते हैं !जितना मुझे पता है आइये जानते हैं उनके अंगों के बारे मे कि वो क्या संदेश देते हैं !
मस्तक :- गणेश जी का मस्तक काफी बड़ा होता है जो हमें अपनी सोच को बड़ा बनाये रखने की और बड़े विचारों को मस्तिष्क में स्थिरता रखने की सलाह देता है !
आँखें :- गणेश जी आँखें काफी छोटी - छोटी होती है जो हमें सन्देश देती है , कि जीवन में सफल होने के लिए एकाग्रता का होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है !एकाग्रता के बिना सरल से सरल काम को भी पूर्ण नहीं किया जा सकता है और एकाग्रता हो तो पानी में देखकर भी घूमती हुई मछली की आँख को निशाना बनाया जा सकता है !
कान :- गणेश जी के कान काफी बड़े होते हैं और ये बड़े कान हमें एक अच्छा श्रोता बनने का सन्देश देते हैं !अर्थात हमारे अंदर धैर्य और एकाग्रता पूर्वक अच्छी बातों को सुनने का सामर्थ्य होन चाहिए !
कुल्हाड़ी :- गणेश जी के दांये हाथ की कुल्हाड़ी हमें ये प्रेरणा देती है , कि हमें सांसारिक बंधनों की असत्य डोरियों को काटकर एकमात्र सत्य ईश्वर की और अग्रसर होने का प्रयत्न करना चाहिए !
रस्सी :-गणेश जी के बांये हाथ की रस्सी स्वयं को अपने जीवन के चरम लक्ष्य की और खींच कर ले जाने का संकेत देती है और यह लक्ष्य है स्वयं श्री गणेश !
मुख :-गणेश जी का मुख काफी छोटा होता है परन्तु ये हमें दो संकेत देता है , कि एक तो हमें कम बोलना चाहिए !कम बोलने से तात्पर्य है कि जितनी आवश्यकता हो उतना ही बोलना चाहिए अधिक नहीं ! दूसरा संकेत जो हमें गणेश जी के मुख से प्राप्त होता है वह है ,कि हमें कम खाना चाहिए अर्थात जीवन के लिए भोजन करना चाहिए न कि केवल स्वाद के लिए !
दांत :-गणेश जी का केवल एक ही दन्त होता है दूसरा नहीं अर्थात हमें केवल अच्छी वस्तुओं का संग्रह करना चाहिए बुरी वस्तुओं का नहीं !
दूसरा संकेत हमें ये प्राप्त होता है , कि यह शरीर नश्वर होता है जिसे एक दिन अवश्य ही खत्म हो जाना है !इसलिए शरीर का अधिक मोह नहीं करना चाहिए !लेकिन "शरीर माध्यम खलु धर्मंसाधनं"के विचार को महत्व देते हुए हमें शरीर को नीरोग रखने का पूरा कर्म करना चाहिए क्योंकि शरीर ही संसार में सभी धर्मों को पूरा करने का माध्यम है और मोक्ष का माध्यम है !
सूंड :- गणेश जी की सूंड मानव शरीर की adaptibility का सर्वश्रेष्ठ उदहारण है !यह सूंड हमें शरीर में दुसरे परिवर्तनों को सहेजने और उनके साथ उसी कुशलता से काम करने का सन्देश देती है !जिस प्रकार स्वयं गणेश जी ने हाथी की सूंड का सामंजस्य स्वयं के शरीर के साथ करते हुए अपने मुख के सभी कार्य सूंड के साथ निर्विघ्न्तापूर्ण संपन्न किये !
हस्त :- गणेश जी का दांया हाथ जो आशीर्वाद देने की मुद्रा में उठा हुआ है ,वो सभी जीवों को सुखपूर्वक जीने का आशीर्वाद दे रहा है !और साथ ही साथ संसार से ईश्वर तक जाने वाले उस दिव्य पथ को भी आलोकित कर रहा है !
मोदक अर्थात लड्डू :-मोदक हमें इस बात की सूचना देता है कि यदि आप कोई कर्म करते हैं तो आपको उसका फल तो मिलेगा ही लेकिन यदि आपका कर्म और उसके प्रभाव नश्वर होते हैं तो आपको नष्ट होने वाला फल ही प्राप्त होगा लेकिन यदि आपके कर्म ईश्वर प्राप्ति के मार्ग को प्रशस्त करने वाले हैं तो आपका प्रसाद भी अलौकिक ,दिव्य और गणेश जी के मोदक के समान अनश्वर होगा ! (अर्थात साधना का फल है मोदक)
बड़ा पेट :-गणेश जी का बड़ा पेट हमें इस बात की शिक्षा देता है ,कि हमें जीवन में जो कुछ भी हो रहां है उसे शांतिपूर्वक पचा लेना चाहिए!चाहे
वह अच्छा हो रहा है या बुरा !
प्रसाद :- गणेश जी सामने रखा हुआ प्रसाद ये बता रहा है , कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड आपके कदमों में है और आपके आदेश की प्रतीक्षा कर रहा है !
मूषक(चूहा):- मूषक अर्थात गणेश जी का वाहन !मूषक के द्वारा गणेश जी ये बताना चाह रहे हैं ,कि ऐसी इच्छाएं जो हमारे वश में नहीं होती हैं वो नुकसान पहुंचा सकती है इसलिए इच्छाएं सदैव उस आकार की ही होनी चाहिए कि हम उन पर सवारी कर सकें यदि यदि इच्छाएं हम पर सवारी करना शुरू कर देती है तो मुश्किल हो जाती है !विशालकाय गणेश जी का वाहन छोटा सा मूषक इसी बात की दार्शनिक व्याख्या करता नजर आता है !
क्यों है ना... गणेश जी का केवल मुख नहीं अंग - अंग भी बोलता है और वो भी लाजवाब !! जय गणेश !
आप सभी को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाऎ ...
श्रीगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें। बहुत अच्छी जानकारी है। घन्यवाद्।
ReplyDeletenice compilation of facts...........
ReplyDeleteघन्यवाद्।
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