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Tuesday, August 30, 2011

बड़ा अच्छा लगता है

 मुझे अब नींद की तलब नहीं
अब रातों को जागना अच्छा लगता है

मुझे नहीं मालूम की तुम मेरी किस्मत में हो या नहीं
पर मुझे खुद से तुम्हे मांगना अच्छा लगता है

क्या जाने मुझे हक है या भी नहीं
पर तुम्हारी परवाह करना अच्छा लगता है

तुमसे मोहब्बत करना सही है या नहीं
पर इस एहसास को जीना अच्छा लगता है

तुम मेरी हो या नहीं
पर तुम्हे अपना कहना अच्छा लगता है

दिल को बहलाया बहुत, पर ये मानता ही नहीं
शायद इसे भी तुम्हारे लिए धडकना अच्छा लगता है

पता नहीं हम कभी साथ रह पाएंगे या नहीं... पर ये ख्वाब देखना अच्छा लगता है
मुझे तुम्हारी हर बात अच्छी लगती है... तुम्हारा साथ अच्छा लगता है
                                   
                                                                                        कृष सुधांशु 

4 comments:

  1. if you are posting a comment, kindly mention your name. your comments are always welcomed...get the credit of it.

    Thanx.

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