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Sunday, December 30, 2012

A humble Request


Seen 1
"Yaar, Chal aaj kisi protest march ko join karte hain... bahut "Maal" rahti hai usme."

Seen 2
"Sir, plz kal class suspend kar dijiye... bachche "outing" bhi kar lenge... hum apni social responsibility bhi nibha lenge..."

Seen 3
"bane rahiye hamare sath "Damini ka daman" me... jald lautte hain"... Is karyakram ke prayojak hain 'Score Condoms' there is lot be won...

Seen 4
"Sarkaar badalni chahiye... kanun badalna chahiye..."

Its not over yet...there are a lot of scenes like this in front of us.
We definitely need a change... Start with the mentality for women.
Neither any Govt. is capable of irradicating Rape nor the Law & Order unless we live in society where women are only a commodity to be used. 
Plz stop making profit of her death...we need to let her finally "Rest in Peace."


क्या आपने बस शोर मचाया ??, कुछ किया भी है?

क्या आपने भी मोमबत्तियाँ जलाई ?
क्या आपने भी सड़क पर उतर के विरोध जताया ?
क्या आपने भी फेसबुक पे अपनी भड़ास निकाली ?
क्या आपने भी बलात्कारियों के लिए कड़ी से कड़ी सजा की मांग की ?
और 
क्या आपको लगता है कि आपका काम पूरा हो गया ?
???????????????????????????????????????????

अभी एक काम बचा है . अगर आप वाकई में चिंतित हैं, नाराज़ हैं तो जस्टिस वर्मा आयोग को ई-मेल करके अपनी बात कहिए . उन्होंने पूछा है कि क्या उपाय किये जाएँ महिलाओं की सुरक्षा के लिए .
जस्टिस वर्मा आयोग का ई-मेल पता- justice.verma@nic.in
5 जनवरी तक अपनी बात उन्हें ई-मेल कीजिए.
आपका 5 मिनट का वक्त जाएगा लेकिन आप कह सकेंगे कि आपने बस शोर नहीं मचाया है, कुछ किया भी है.

सोच बदलो... दुनिया बदलेगी

मुझे उसका नाम तक नहीं मालूम... 
पर मन में बहुत दुःख है, निराशा है, क्रोध है, और सबसे ज्यादा शर्म है...
उसकी मौत के जिम्मेद्दार हम सभी हैं...
ना सरकार पलटने से हल निकलेगा और ना ही कानून बदलने से...
अपने अंदर की मानसिकता को बदलना होगा...
महिलाओं को देखने का नजरिया बदलना होगा...

जो सड़कों पर लूट ले नारी का सम्मान
ऐसा कैसे हो गया अपना हिन्दुस्तान...
शर्मिंदा इतिहास है और समय भी है हैरान
भारत मां की कोख से जन्मे कैसे कैसे हैवान...
© कृष सुधांशु

शर्मिंदा हूँ

पूछ रहा है पौरुष मेरा .. क्या सचमुच मै जिंदा हूँ ??
और अगर जिंदा हूँ तो इस ज़िन्दगी पर शर्मिंदा हूँ...

Tuesday, October 2, 2012

क्या आपको शास्त्री जी याद नहीं ??


आज दो अक्तूबर है राष्ट्रपिता महत्मा गाँधी का जन्मदिन ।
फसबूक पर इससे जुडी कुछ पोस्ट दिखी...
कुछ ने महत्मा गाँधी का फोटो शेयर किया है कुछ लोगों ने उन्हें यह दिन समर्पित किया।
कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें " आज छुट्टी है " से ज्यादा नहीं मालूम।
आज मेरी माँ और मेरे पापा का भी जन्मदिन दिन है इसलिए मुझे आज के दिन से विशेष लगाव है।
आज का दिन एक और विशेष महत्व रखता है जिसे लोग भूल जाते हैं।
दो अक्तूबर को लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्मदिन होता है,  पुरे देश में शास्त्री जी के बुत को आज के दिन बहुत कम मालाएं नसीब हो पाती हैं।
लेकिन कलेक्ट्रेट स्थित अनुमंडल कार्यालय परसिरे में शास्त्रीजी की प्रतिमा की सफाई करते कर्मचारी को देखकर सुखद अनुभव हुआ।
चलो कम से कम इन्हें "जय जवान-जय किसान" के नायक लालबहादुर शास्त्री की प्रतिमा पर जमी धूल की आज तो याद आई।

Monday, October 1, 2012

Happy B'day Maa & My Great Pa

This post is dedicated to say "Happy Birthday" to two very special people - yep, my Mom & Dad.
And before you ask, yes, they have the same birthday although they have age difference. 
Sharing an old Photograph.

May Almighty's Best Blessings shower on both of you. 
I love you both. 
Wish you a Happy Birth day.
Live Long & Live Strong. :)

Monday, September 17, 2012

Support Raj Thackeray


We all should support Raj Thackeray and take his initiative ahead.





1. We should teach our kids that if he is second in class, don't study harder.. just beat up the student coming first and throw him out of the school 

2. Parliament should have only Delhiites as it is located in Delhi 

3. Prime-minister, president and all other leaders should only be from Delhi 

4. No Hindi movie should be made in Mumbai. Only Marathi. 

5. At every state border, buses, trains, flights should be stopped and staff changed to local men...

6. All Maharashtrians working abroad or in other states should be sent back as they are SNATCHING employment from Locals...

7. Lord Shiv, Ganesha and Parvati should not be worshiped in our state as they belong to north (Himalayas) 

8. Visits to Taj Mahal should be restricted to people from UP only...

9. Relief for farmers in Maharashtra should not come from centre because that is the money collected as Tax from whole of India, so why should it be given to someone in Maharashtra? 

10. Let's throw all MNCs out of Maharashtra, why should they earn from us? We will open our own Maharashtra Microsoft, MH Pepsi and MH Marutis of the world...

11. We should be ready to die hungry or buy food at 10 times higher price but should not accept imports from other states..

12. Ensure that all our children are born, grow, live and die without ever stepping out of Maharashtra, then they will become true Marathi's...

JAI MAHARASHTRA!



Saturday, August 4, 2012

Happy Friendship Day

Friendship is a rare and precious commodity. If you have a friend, who truly understands you and accepts you despite your shortcomings, then you are the luckiest person in the world. I feel fortunate to have good friends. Over the years, I have realized the value of friendship and I feel blessed to have great friends. On this friendship Day I would like to thank those best friends, who have stuck with me through thick and thin...
Thank You for always being a stronger side of me....
Wish you a Happy Friendship Day.

Sunday, July 29, 2012

RIP मेरी टूटी फूटी शायरी


बचपन से पढ़ने का शौक है मुझे और लिखने कि कोशिश करता हूँ... और इन्ही कोशिशों का नतीजा था मेरी टूटी फूटी शायरियां... फसबूक के सभी मित्रों को धन्यवाद जिन्होंने मुझे अपने लाइक्स और कमेंट्स से उत्साहित किया और मैं लिखता चला गया... आज कुछ भी लिखने का दिल नहीं कर रहा है. दिल बोझिल है और मन अशांत है... अब शायद आगे न लिख पाऊं... चलिए मेरी टूटी फूटी शायरी को श्रधान्जली देते हुए इसे विदा करते हैं...

RIP मेरी टूटी फूटी शायरी 

अन्ना आंदोलन का अंत


अन्ना आंदोलन का अंत एक दिन होना था और हो भी गया... एक सामाजिक कार्यकर्ता का अंत हुआ, अब उन्हें राजनितिक कार्यकर्ता कहना ज्यादा उचित होगा. देश के इन "सच्चे सपूतों" के लिए भ्रस्टाचार मिटाने से ज्यादा लोकपाल बिल पास कराना ज्यादा ज़रुरी है. इन्हें सिर्फ केंद्र में व्याप्त भ्रस्टाचार दीखता है, राज्यों का क्या जहाँ  UPA कि सरकार नहीं... लोकपाल बिल पास कराना अब इनकी प्रतिस्था का विषय है. जिस प्रकार नयी फिल्म कि रिलीज के समय निर्माता और अभिनेता विभिन्न टी.वी. कार्यक्रमों में जा कर उनकी पब्लिसिटी करते हैं उसी प्रकार ये भी “अपने द्वारा” बनाये गए लोकपाल बिल कि मार्केटिंग कर रहे हैं. किसी और का इन्हें मंजूर नहीं.
एक वक्त था जब मैं भी इनका समर्थन कर रहा था पर अब इनके कार्यों से निराशा हो रही है. इन्हें सब से भ्रष्ट कांग्रेस दिखती है जब कि सरकार में और भी कई पार्टियां है. भीड़ जुटाने के लिए बल्क SMS, सोशल मीडिया मार्केटिंग, क्या क्या हथकंडे अपना रहे हैं लेकिन वो भीड़ शायद ही अब दोबारा आ सके जो इनके बहकावे में आकर सडको पे उतर आई थी कि भ्रस्टाचार मिटेगा... जब सत्य का ज्ञान हुआ तो सभी ने दूरी बनाली. पर दुखद बात यह है कि उनके एक कार्यकर्ता ने अलग होने वालों के लिए इतना तक कह डाला “ जो इस समय मैदान छोर के जायेगा वो अपने पिता कि औलाद नहीं”. शर्म करो. लोग खुद नहीं आये थे तुमने बुलाया था. अब जब वो जा रहे हैं तो ओछी बातें.
इनके नए फोर्मुले पर तो बहुत हसी आती है... भीड़ जुटाने के लिए बुलाया भी तो किसे एक दवा व्यपारी को जो कल तक योग से दुनिया कि सारी सम्सायें सुलझाने का दावा करता था... कुछ लोग उन्हें बाबा कहते हैं तो कुछ स्वामी पर ये उनके द्वारा खुद ही प्रचारित किये गए संज्ञाएँ हैं. खुद को राम और जेल में बंद उनके ही अपने बंदे को कृष्ण कि उपाधि भी दे डाली है.
कुछ लोग अन्ना को गाँधी बनाने पे तुले हैं... नक़ल कर के कुछ देर का तमाशा तो खरा कर सकते हैं पर किसी स्थायी समाधान कि रचना करना मुश्किल है... देखते हैं तमाशा और कितने दिन चलता है... कितने खबर इन्हें LIVE दिखने में दबते हैं. मूल समस्यायों को भूल कर कितने दिन और हम सरकार और अन्ना के इस खेल का लुत्फ़ उठाते हैं

PS : Please ignore the grammatical errors & spellings..

Saturday, July 28, 2012

भुला दे मुझको


रूठना तेरा... मेरी जान लिए जाता है
हस्ते हुए आ... और रुला दे मुझको 
मुझे याद कर के तकलीफ ही होती होगी
एक किस्सा हूँ पुराना... भुला दे मुझको


© कृष सुधांशु

Friday, July 27, 2012

कर के देखना

लम्हा लम्हा किसी का इंतज़ार कर के देखना
कभी आप भी किसी से प्यार कर के देखना 


आप उनके दिल होंगे... जान होंगे... जहान होंगे
खुद को उनके लिए बेकरार कर के देखना 


अगर अजमाना हो अपनी मोहब्बत 
उन्हें भूलने का नाटक एक बार कर के देखना 


टूट जाते हैं खून के रिश्ते भी
गलतियाँ कभी दो चार कर के देखना


© कृष सुधांशु

Monday, January 23, 2012

Jai Hind

A currency issued by Netaji Subhash Chandra Bose’s Bank of Independence has been made public here on the eve of his 103rd birth anniversary, leading to excitement among his supporters.

In the 1980s, Ram Kishore Dubey, a retired contractor with the State Irrigation Department, discovered the note in his grandfather’s Ramayana book, but did not realise its historical significance till recently.

“My grandfather, Praagilal, worked for Netaji in the Azaad Hind Fauj and passed away in 1958,” says the 63-year-old Dubey.

“He used to stay away from the family for months on end working covertly for the INA [Indian National Army] in the Bundelkhand region on a recruitment drive for its Jhansi ki Rani Regiment, led by Lakshmi Swaminathan. He gave up his land for the cause of the army and so Netaji rewarded him with this note promising him the amount in independent India.”

The currency, of denomination one lakh, has a photograph of Bose on the left side and a pre-independence map of the Indian territory with the inscription “ swatantra bharat” in Hindi on the other. In the middle are inscribed the words “ Jai Hind” in English, with the words “I promise to pay the bearer the sum of one Lac” below it.

On the top of the note is a series of flags of the Azaad Hind Fauj over a bold inscription saying “Bank of Independence” with “good wishes” inscribed at the bottom.

“Nobody is aware of the this fact that submitting to the demands of the British, Nehruji [Jawaharlal Nehru] gave them Subhash Bose in return for India’s independence,” says Mr. Dubey.

Several historians contend that in April 1944, Netaji established the Azad Hind Bank or the Bank of Independence in Rangoon (now Yangon) to manage funds donated by the Indian community from across the world.

मेरी टूटी फूटी शायरी

तेरे इश्क में पागल हुए, तो तसल्ली सी हुई,
पागलपने से कुछ कम होता, तो इश्क ना होता


कृष सुधांशु