हमने जो कलम उठाई... चाँद डर कर बादल की ओट हो गया हमने चाँद पर "बारूद" लिखा और... चाँद पर विस्फोट हो गया
आगे भी है...
लाल पीला रंग मुझे पसंद नहीं... सूरज को आज नीला करूँगा तू दे पिचकारी में रंग भरके... सूरज को आज जम के गीला करूँगा
अगली पंक्तियों में प्रेम रस है....अर्ज किया है...
देख ले प्रेम मेरा एक दम सच्चा है... शाहजहाँ तक मेरे आगे बच्चा है तेरी मोती जैसी आँखों को निकाल के... सचमुच के मोती जड़वा दूंगा कब्र मुमताज की खोद के... तुझे ताजमहल में गड़वा दूंगा”
उम्मीद है अच्छी लगी होगी आपकी प्रतिक्रिया के इन्तजार में हूँ आगे भी प्रयास जारी रहेगा ... :)