मैं एक अंडा हूँ. आम सा अंडा, शुद्ध, खालिस, देशी अंडा. अंडा यानी जीरो, जीरो यानी शून्य, शून्य यानी सिफ़र, सिफ़र यानी वही .........अंडा. सारा देश अंडामय हो रखा है. अंडे ही अंडे. गली गली में 'अंडे-फादरम' का नारा गूंज रहा है. अंडे फादरम -अंडे फादरम.
लेकिन क्या किसी ने मेरे बारे में भी सोचा है जो सचमुच अंडा है. सुबह उठता है तो अंडा, रात को सोता है तो अंडा. संविधान की उम्र रिटायरमेंट की हो गई लेकिन मैं अंडा वहीं का वहीं हूँ. वैसा का वैसा ही हूँ...न चोकोर हुआ न त्रिभुज बना. गोल का गोल. न बायोलोजी बदली, न फिजिक्स बदला, न बदली जियोग्राफी और चेमिस्ट्री...और सबसे बड़ी बात मेरी इकोनोमिक्स भी वहीं की वहीं है. आज भी उसी तरह से ठेले पर अंडे बेचता हूँ , सब्जी की रेहड़ी लगाता हूँ, दूध से लेकर पान-बीडी तक बेचता हूँ. पीढ़ियों से बीड़ियाँ बना रहा हूँ ...और उधर शराब बेचने वाले हवाई जहाज उड़ाने लगे हैं (किंगपिस्सर) . मैं तो पेट भरने के लिए रोज कुवां खोदता हूँ, मजदूरी करता हूँ . डंडी ग्राम में से लेकर भत्ता पारसोल तक पुलिस के डंडे और गोलियां खाता हूँ और जब पानी सर से ऊपर चले जाता है तो बिदर्भ का ये किसान अंडा कुंए में कूद कर खुशकुदी भी कर लेता है.
मैं एक अंडा हूँ ...दुखी अंडा ... कभी इधर लुढका कभी उधर लुढका, कभी इधर हांका कभी उधर हांका. मेरी औकात एक वोट तक ही सिमित है. एक अंडा यानी एक वोट ....बस उसके अलावा इस अंडे का कोई मतलब नहीं. मैं तो खुद को एक अंडा समझता रहा लेकिन देश के नेताओं ने आमलेट खाने के चक्कर में मुझे कभी हिन्दू अंडा और कभी मुस्लिम अंडा बताकर, धर्म के नाम पर अंडे को अंडे से लड़ाया. मैं तो एक मामूली अंडा हूँ ...मुझे कहा गया तुम मामूली नहीं हो...तुम सिर्फ अंडे नहीं हो ..तुम दलित अंडे हो, ठाकुर अंडे हो ब्राह्मण अंडे हो ...अन्डो का वर्गीकरण करके ..आरक्षण की मलाई चाटने वालों देखो मैं तो वहीं का वहीं हूँ ...बेनूर, बेकसूर, बेकलर, बेबस और बेकार अंडा ...और तुम लोग मुझे पुकारते हो तो बे के आगे अ लगा लेते हो अबे अंडे ...अबे अंडे. सन्डे हो या मंडे मेरी किस्मत में तो डंडे ही लिखे हैं. सरकारी डंडे के हथकंडे हमें अंडे से ज्यादा और क्या समझते हैं. सरकार के हाथ में डंडा है और हमारा साइज चाहे जितना भी बड़ा हो जाए रहेंगे तो डंडे के नीचे ही ना.
झंडा ऊंचा रहे हमारा यही नारा लगाते लगाते हमारे नाड़े ढीले हो गए...यानी पेट अन्दर होता गया और तुम नेता लोग अपने पेट में एक पूरा हिंदुस्तान लेकर बैठ गए हो. किसे क्या मिला ....जिसे मिला उसे महल के बदले किला मिला. लाख के बदले करोड़ मिले. एक आदमी सत्ताईस मंजिल के घर में रहता है और यहाँ एक कमरे में छः छः आठ आठ अंडे एक साथ रहते हैं. हामरे जैसे अंडे साइकिल लेकर काम पर निकलते हैं और रास्ते भर बार-2 उतरती चेन को ठीक करते रहते हैं...और उधर रईसजादे इतनी चढ़ा लेते हैं कि उन्हें यही नहीं दीखता कि जिस फूटपाथ पर उन्होंने पीकर गाडी चढ़ा दी है वहां कितने थके-मांदे अंडे सो रहे थे. वो अंडे सोने की मुर्गियों ने दिए हैं चांदी के अंडे हैं ...हमारे अंडे तो स्कूल में मार खाते हैं, फिर स्कूल से निकाले जाते हैं और फिर लग जाते हैं फेक्टरी और दुकानों में दिहाड़ी पर. हम अण्डों की वजह से ही देश चलता है पर हमें क्रेडिट नहीं दोष दिया जाता है कि हमारी फैक्ट्री आँख बंद करके अंडे ही अंडे पैदा करने में लगी हुई है. इन्हीं अन्डो की वजह से देश चल रहा है. ये अंडे इतने मामूली भी नहीं हैं. हम अण्डों का कोई लिंग नहीं होता, न पुलिंग न स्त्रीलिंग पर हर लिंग का एक अंडा होता है ...एक नहीं दो ......अब फेसबुक को ही लो इसमें भी दो अंडे हैं बी और के बीच में दो अंडे ...और इन्हें हटा दिया जाते तो फेसबीके बनेगा और ऐसा लगेगा की आंधी आई है और कोई फेसबीके को जबरदस्ती भगा रहा है. कहने का मतलब सीधा है कि अण्डों को खोखला मत समझो. इनके अन्दर बहुत उर्जा है और अगर एक साथ निकली तो भ्रष्टाचारियों का अचार बनते देर नहीं लगेगी. लेकिन मेरे प्यारे अंडे भाइयों अपनी ऊर्जा को इस्तेमाल करने से पहले दिमाग का भी इस्तेमाल करना...अंडा चाल और भेडचाल में फर्क होना ही चाहिए...
wat an anda..........wah lgat hai tere sir wala gol gol anda foot hi gya ab ..badi vyangatmak baatein nikal rhi hain ..gr8
ReplyDeleteमेरे प्यारे अंडे भाइयों एवं बहनों यहाँ पर लिखे गए सभी कथन हमारे अपने विचार हैं. इनका किसी पार्टी या किसी व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है.
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