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Wednesday, September 14, 2011

हिंदी दिवस पर विशेष : कृष सुधांशु

पोते ने कहा दादा से
‘पापा ने उस कार्यक्रम में
साथ ले जाने से मना कर दिया
जिसमें हर वर्ष
हिंदी दिवस पर भाषण करने जाते हैं।


आप ही समझाओ
मैं तो पढ़ रहा हूं अंग्रेजी माध्यम स्कूल में
हिंदी के बारे में सुनना है मुझे भी
मैं भी पढ़ूंगा
बहुत से माता पिता अपने बच्चों को पढ़ाते हैं ।’


सुनकर दादाजी हंसे और बोले
‘बेटा, जो माता पिता गरीब हैं
वही अपने बच्चों को हिंदी पढ़ाते हैं ।
जिनके पास पैसा है बहुत
वह तो अंग्रेजी सभ्यता बच्चों को सिखाते हैं ,


कुछ लोग कहते हैं कि हिंदी गरीबों की भाषा
सच ही लगता है क्योंकि
असली संस्कृति तो गरीब ही बचा रहे हैं।
उनमें फिर भी है बचा है माता पिता के लिए सम्मान
वरना तो जो अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ा चुके हैं
अब उनकी उपेक्षाओं का गाथा गाते हैं।


कुछ लोग वृद्धाश्रम में बस जाते हैं।
संस्कृति और संस्कार तो बचाना चाहते हैं
ताकि रीतियों के नाम पर
स्वयं को लाभ मिलता रहे


भाषा ही इसका आधार है
सच उनसे कौन कहे
वेतन की गुलामी आसानी से मिल जायेगी
इस भ्रम में अंग्रेजी को लोग अपनी मान लेते हैं
हिंदी से दूरी रखकर गौरव लाने की ठान लेते हैं


तुम्हारे बाप को डर है कि
कहीं गरीबों की भाषा के चक्कर में
तुम भी गरीब न रह जाओ
इसलिये तुम्हें हिंदी से दूर भगाते हैं 
पर जमाना गुलाम रहे हमारा
इसलिये उसे जगाते हैं


                                             कृष सुधांशु

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