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Wednesday, April 17, 2013

बिछडन

कल गुनगुन जा रही है अपने घर
उसके पापा आये हैं उसे अपने साथ ले जाने...
आज पहली बार राज का आना अच्छा नहीं लग रहा है... 
ऐसा लग रहा है जैसे वो मेरी साँसे ले जाने आयें  हैं  घर में अजीब सी शांति है... सभी चुप हैं
शशि स्लो मोशन में पैकिंग कर रही है...
इन सब के बीच गुनगुन अपनी दुनिया में मस्त है... स्वछंद... अबोध... बेफिक्र !!!

Sunday, March 31, 2013

न जाने क्यूँ, होता है ये ज़िंदगी के साथ




न जाने क्यूँ, होता है ये ज़िंदगी के साथ
अचानक ये मन
किसी के जाने के बाद,  करे फिर उसकी याद
छोटी छोटी सी बात,  न जाने क्यूँ 

वो अंजान पल
ढल गये कल, आज वो
रंग बदल बदल,  मन को मचल मचल
रहें, न चल न जाने क्यूँ, वो अंजान पल
तेरे बिना मेरे नैनों मे
टूटे रे हाय रे सपनों के महल
न जाने क्यूँ, होता है ये ज़िंदगी के साथ ...

वही है डगर
वही है सफ़र, है नहीं
साथ मेरे मगर,  अब मेरा हमसफ़र
ढूँढे नज़र न जाने क्यूँ, वही है डगर
कहाँ गईं शामें मदभरी
वो मेरे, मेरे वो दिन गये किधर
न जाने क्यूँ, होता है ये ज़िंदगी के साथ ...